.

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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Tuesday, November 19, 2013

अप्पू एंड मनु इन मूवी हॉल


watch video presentation on you tube .. if like or dislike please leave a comment .. :)
http://www.youtube.com/watch?v=crVhn6hdqME






"हाथी " इस विषय को पढ़ कर मुझे एक घटना याद आ गयी ..मेरे बचपन की .. जब एशियाड गेम्स हुए थे इंडिया में दिल्ली में .. हमारी एक आंटी घुमने आई थी दिल्ली और यहाँ से एक प्यारा सा छोटा सा हाथी ले जाकर मेरे छोटे भाई को दिया था गिफ्ट में ..उसे वो हाथी बहुत पसंद आया .. उसे बहुत प्यार करता था वो ... उसी पर एक कविता लिखने की कोशिश की है ...

दिल्ली से आंटी थी आई
मनु के लिए अप्पू लायी

भोला भाला गोल मटोल
लम्बी सूंड और आंखे गोल

मनु अप्पू रहते साथ
चाहे दिन हो या हो रात

मनु की बातो का जवाब
सीटी बजा कर देते जनाब

तभी शहर में एक पिक्चर आई
"हाथी मेरे साथी " ने धूम मचाई

पापा ने भी टिकट मंगाई
अप्पू को भी ले गया भाई

कुर्सी पर बैठे  मनु जम कर
कंधे पे बैठ अप्पू देखे पिक्चर

जब जब हाथी परदे पर आता
सीटी बजा अप्पू शोर मचाता

अप्पू के तो मजे हो रहे
पर दर्शक सारे बोर हो रहे

किसी ने जाकर गार्ड बुलाया
मनु जी को डांट पिलाया

अब तो और भी बुरा हाल था
पीं पीं के साथ मनु रो रहा था

चारो ओर मचा तहलका
बंटाधार हुआ उस शो का

आखिर सबने हार मान ली
मनु जी की बात मान ली

पर साथ ये शर्त भी रख दी
शोर न करेंगे अब अप्पू जी

एक चोकलेट पर मनु हुए खुश
दर्शको भी अब हो गए खुश 


Sunday, November 10, 2013

काहे प्रीत बढ़ायी


माहिया लिखने कि एक कोशिश----

दुल्हन सी शर्माती
स्याह हुयी प्राती
बादल थे  उत्पाती।

ठोकर जब जब खाती
अल्हड नदिया सी
गति मेरी  बढ़  जाती।

मरना तो होगा ही
जी कर दिखलाये
हिम्मत वाला वो ही।

सपना ये सच होगा
होगी भोर सुखद
सूरज अपना होगा।

हरना  पथ के हर तम
दीपक बन कर तुम
बाती  बन जाये हम ।

रात भर न वो आया
दिन में तड़पाया
साजन न सखी निंदिया।

कुचले मेरे सपने
कोमल सतरंगी
थे वो मेरे अपने।

इक  दीप सजाया है
चौखट पर मेरी
आँधी  का साया है।

गिन गिन रोटी गढ़ती
पढ़ लिख महिलायें
स्वपन गृह संजोती।

काहे प्रीत बढ़ायी
परदेशी पंक्षी
ऋतु बदले उड़ जाई।

Thursday, October 3, 2013

ॐ ज़प ले





ओ राम दुलारे ,रहिमन प्यारे
तू नानक भज या ईसा ध्याले
सब  में मैं ही बसा 
जरा ध्यान तू करले ... 
ॐ जाप तू कर ले ....ॐ ॐ ज़प ले

जा तू काशी  या जा काबा
गुरूद्वारे जा या तू गिरिजा
महल अनेको तुमने बनाये
पर मैं तेरे मन का चेरा
जरा झांक तू मन में .......
ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले

धर्म अनेकों तुमने पाले
पर इंसा धर्म न पाला रे
पाना चाहो मुझको तो फिर
इंसा बन के दिखाना रे
जरा मन में विचार ले .......
ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले

कहले मुझको ॐ या अल्लाह
होली सोल या एक आधारा
मैं तो हूँ बस प्रेम की इक लौ
जलना चाहूँ  तेरे अन्दर 
जग रोशन कर दे .... .

ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले






Tuesday, September 17, 2013

रहम करो



मूक अंखियो की तुम  ये गुहार सुन लो
हम में भी जाँ  है ...हमे जीने का अधिकार दो
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

अपने जिगर के टुकडे  गर कही खो जाते है
एक सुई उन्हें चुभती तो दर्द तुम्हे तडपाते  है
सोचो क्या हाल होता  है मेरे लख्ते जिगर  का
छुरी गले पर जब चलती जेब तुम्हारी  भरती है
मेरे लहू का हर कतरा उनकी आँखों से छलकता है

 रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

हम पंछी उन्मुक्त गगन के उड़ते अपनी धुन में
जिसने बनाया तुमको इंसाँ हम भी उनके बेटे
सांसो की सरगम बजती है प्यारे से इस दिल में
हमने भी ममता से सींचा है अपना चमन ये

मेरे घर का आँगन तुम क्यों सूना कर जाते हो
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

ओ रहमदिल कहलाने वालो फ़रियाद हमारी सुनलो
अपने सुख की खातिर यूँ न मेरी दुनिया लूटो 

इंसा होकर तुम तो  केवल  हिंसा को अपनाते हो
तुमसे भले हम  बेजुबान है प्रेम पे जान लुटाते है
सृष्टी चक्र  खंडित कर तुम क्या खुद जिन्दा रह पाओगे 
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो


** नेह  **

Tuesday, August 27, 2013

चीरहरण






लगी न बाजी
हुयी न जीत हार

फिर क्यूँ भोगती चीरहरण

सीता और द्रौपदी आज  …।?


पावन वृन्दावन
क्यूँ बन रहा चौपाल
दु:शासन  लीलायें
देख रहा धृतरास्ट्र

गांडीव गदा सब
क्यूँ मौन है आज
हे पार्थ सारथी
रथ हांके कौन दिशा

कहा था तुमने 

 होगी  हानि धर्म की जब जब
लूँगा अवतरण में तब तब

क्यूँ भूले वचन तुम 



हे दौपदी सखा 

कहाँ  छुपाया चक्र सुदर्शन

छेड़ते क्यूँ नही

मेघमल्हार या दीपक राग 


डुबो दो अब पाप की नैया

धर्म  दीपक फिर से जला दो

आओ तुम हे मुरलीमनोहर

प्रेम की वंशी फिर से बजा दो 

Friday, May 24, 2013

एक मुट्ठी धुप





बिखरने दो
एक मुट्ठी धुप
आँगन में मेरे
छाँव की कालिमा
अब  सही नहीं जाती


खिलने दो
खुशियों के फूल
बगिया में मेरे
झरते पत्तो  की जुदाई
अब सही नही जाती

दर्द के नग्मे



ना सुना दर्द के नग्मे हमे 

जिन्द्गी अब रास आती नही 

मौत कहे तु चल मेरे सँग 

पर शर्त है एक बार मुस्कराने की

Friday, April 26, 2013

दर्पण



पूछने लगा है अब
दर्पण यूँ  मुझसे
खोजते हो किसे अब
तुम यूँ मुझमे
कैसे  दिखाऊ अब
अक्स मैं तेरा
मासूम खून के धब्बे
उभरे इस कदर
लगता है हर चेहरा अब
मुझे दागदार सा
कोमल नाखुनो ने उकेरी
दरार अनगिनत
सुन्दर जिस्म तेरा अब
दिखे विछिन्न सा
खो गयी चमक अब
बेनूर मैं हुआ
देखना हो मुख जब
मन में झांकना
पा जाओ गर खुद को
इतनी दया करना
आइना ये सच का तब
जग को भी दिखा देना









Thursday, April 25, 2013

दुर्लभ काया




 काया दुल्हन
चढ़ पालकी चली
पिया मिलन

तन पिंजरा
उड़ जाएगा पंछी
अनंत यात्रा

दुर्लभ काया
देवगण तरसे
 वृथा  गंवाया

रूह मदारी
तन कठपुतली
कहे नाचो री

देह नश्वर
कहते ज्ञानी जन
आत्मा अमर

Wednesday, April 24, 2013

जाने कयूँ करता आज मन मेरा




जाने कयूँ करता

आज मन मेरा
एक कश लगा लूँ
उड़ते देखूँ फिक्र को
बनके धुआँ
थोड़ा सा हँस लूँ

जाने कयूँ करता
आज मन मेरा
एक पैग चढ़ा लूँ
पी जाऊँ हर गम 
डाल के बर्फ
थोड़ा सा झूम लूँ

जाने कयूँ करता
आज मन मेरा

सिसकी हवा

उठ रे इंसा
बुझा कैंडल जला
हैवानियत

उगा सूरज
बुझा कैंडल जगा
संवेदनाये/ मन मनुज

इंसानियत
हुयी फैशनेबुल
हो गयी गर्त


 
कृष्ण प्रभात

गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्धो की महफिल
सिसकियो की तान

देश महान
गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्ध करे नर्तन
गौरेया ताने आह

सौम्य भारत 

कलुषित हृदय
जन मानष 

फैलती रही 

सिसकियाँ मासूम
लुटती रही

सिसकी हवा

कलियो का क्रंदन 
उसने सुना

वहशीपन
विज्ञान की ये देन
प्रगतिपर

Saturday, April 20, 2013

जय माँ अम्बे



मोक्षदायिनी
साधना भक्ति तप
दुर्गम पथ

जीवन पथ
करे मार्ग प्रशस्त
कर्म साधना

चाहूँ न कुछ
भक्ति वर देना माँ
प्रत्येक जन्म

चंचल चित्त
साधू जितना इसे
बहके नित

सौम्य सरल
दमके मुख मैया
मैं बलिहारी

जग जननी
हरो तम जग का
तू है कल्याणी

लाल चुनर
गले मुंडमाल है
माँ का शृंगार

सौम्य भारत
कलुषित ह्रदय
जनमानस

ये बर्बरता
बना भाग्य हमारा
क्यूँ पूजे माता ??!!

साध्य साधता
साधक तन मेरा
मन बाधक

Wednesday, April 3, 2013

चाँद मचला



चाँद मचला
छूने चला सरिता
चांदनी संग

भर आगोश
सरिता निहारती
प्रिय का रूप


भीगी हवाएं

ख़त लायी पिया का
क्षत विक्षत 



 बैठी सुस्ताने


ढलती हुयी साँझ

बबूल छांव




सत्य है टंगा
साक्ष्य की शूली पर
तडपे नंगा 



प्रेम दीपक

जले मन मंदिर
नेह की बाती 

नीड़ के पाखी


नव्या में कुछ दिन पूर्व प्रकाशित मेरी रचना "नीड़  के पाखी "  सभी dosto के सम्मुख अवलोकनार्थ .. :) और इस रचना के प्रकाशन का सारा श्रेय मेरे परम मित्र को जाता है जिसने मुझे जरुरी मार्गदर्सन दिया और प्रेरित किया नव्या में प्रकाशन हेतु भेजन के लिए ... नव्या की संपादिका आदरणीया जी की भी तहेदिल से आभारी हु जिन्होंने इस रचना को प्रकाशित कर मुझे अनुगृहित किया :) अब आप सभी की निःसंकोच राय का तहेदिल से स्वागत है :)

नीड़ के पाखी 

चल उड़ रे पाखी ,नीलगगन

उड़ चल तू  पर्वत से ऊँचे बादल के पार

मंजिल तेरी अनंत आकाश

अंजाना सफ़र,चलना है अविरल

जाने कितने सखा सहोदर
देवदार बट पीपल उपवन
छांव घनेरी तुझको  लुभाए
ख्वाबों संग तेरे दौड़ लगाये
थकने लगे जब व्याकुल पंख
लौट चले तेरे सखा सहोदर
रुक ..जरा पीछे मुड़ देखना
खड़ा हुआ हूँ बाहें फैलाये
उसी धरा पर पैर जमाये
आ बैठना गोद में मेरी
सुस्ता लेना पल दो पल
नयी उर्जा नयी आशा भर कर
नयी किरणों के रथ चढ़ कर
आसमान के राही  तुम
चल देना फिर नयी डगर पर

                ** नेह **


Tuesday, March 26, 2013

गा रही फाग



रंगरेजवा
रंग मोरी चुनड
पिया  के रंग



ओ मोरे कान्हा
यूँ रंग दीज्यो मोहे
हो जाऊं कृष्णा


खेलेंगे रंग
बलम परदेशी
यादो के संग

गा रही फाग
पिया परदेशिया
विरहा गान

फाल्गुनी हवा
ले जाना संग तुम
घृणा के रंग


होली के अनगिनत रंगों में से एक रंग ये भी महंगाई का रंग ...इसकी भी धार झेलो आप ....:)

कईसे मनी 
कईसे मनी कईसे मनी हो रामा कईसे मनी गुझिया बिना होली कईसे मनी 
नकली खोआ--(मावा)
महंगी शक्कर
नक्कालो के राज मा
गैस सिलेंडर होय रहा सोना
रख दीन्हा उसको लोकर में
घी की भैया बात न पूछो
सुगंध भी लेत है टीन में 
कईसे मनी कईसे मनी कईसे मनी हो रामा कईसे मनी
बिना गुझिया के होरी 
कईसे मनी 
 


** नेह  **







Wednesday, March 13, 2013

आयो फ़ाग





श्याम तेरे  सलोने मुख की आज छटा ही  निराली है
राधा ने तेरे श्यामल तन पे प्रीत से की चित्रकारी है

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ओ , अनजाने फरिश्ते ,,
तूने ये कैसा रंग डाला
रंग  गया मेरा  तन मन सारा
तन्हाई की होली जल गयी
ख्वाबों की रंगोली सज गयी
अरमानो के फूल खिले है
इन्द्रधनुषी सपने सजे है 

अहसासों की खुशबू से अब
महके है मन उपवन सारा
लाल हरे या  नीले पीले
सारे  रंग बेरंग दिखे है 

अबके होली ओ मोरे रसिया
तेरे रंग ये मनमीत रंगा है 

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जा रे ओ रसिया , तू है छलिया
रास रचाता गोपियों के संग
मोहिनी तेरी बतिया है
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बृष भानू  लली  के नैन रतनारे
भीगे है कान्हा देख प्रीत रंग रे 

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मोहक मुस्कान बांकी  चितवन
बासुरी बजाये नन्द नन्दन
झूमी लतिका ..झूमी गोपिया
संग झूमे राधे मोहन रे 

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इत  राधे उत मोहन ठारे
हो रही बरजोरी रे
लाल गुलाबी गुलाल उड़त  है
रंग पिचकारी की धार चली रे
राधे मोहन मोहन राधे
दोनों एक दूजे में खोये
नैनो से नैन जो मिलने लगे
प्रीत के रंग रंगी होली रे 

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Monday, March 11, 2013

अग्नि परीक्षा



युग बदला 
बदल गए राम
संग सीता भी
हर युग के साथ
पर न बदला 

.
.
"वो धोबी "

.
.
आज भी  आधुनिक सीता
देती है अग्नि परीक्षा 

आज भी होती निष्कासित
कितनी परीक्षा ..????
कब तक ....?????
.

.
न बदलेगा "धोबी "
बदलते रहेंगे चेहरे
युही राम 

Tuesday, March 5, 2013

बसंती रंग



बनते शूल
बिन तेरे साजन
टेसू के फूल

रख  विश्वास
आस किरण फूटे
साँझ के बाद


साँझ किरण
दृश्य 
मनभावन

मन प्रसन्न

मन वसंत
जो सजन हो संग
महके वन 



आम्र मंजरी 

 दूँ पुष्पांजलि  माते
भर अंजुरी

बसंती रंग
निशानी कुर्बानी की
देश  औ ' दिल

हुआ हादसा
पत्थरों का शहर
पिघल गया



लुटाये जिया
 रंगीन कलियों पे
बासंती पिया

भौतिकवाद
घोले रिश्तों में नित
ये अवसाद


झरते पत्ते
सुना रहे संदेसा
सुख आएंगे /नवजीवन

पूनम रात
हुयी अमृतवर्षा
चातक प्यासा

आया जो मीत
उड़ा  ले गयी चित्त 

 हवा बसंती

खिलें  सरसों
जगे ख्वाब अधूरे
दबे थे बर्षों 


हार के जीती
जीत के हारी पिया
प्रेम की बाज़ी


छाया  बसंत 
जल रहे पलाश  

कूकी कोयल  लौट आओ सजन
 आई है प्रेम रुत  / नैना  राह  तकत


महंगाई को  प्रस्तुत करने की  एक कोशिश ...


गुल्लक  टुटा
 आया न गुड़ ...चना
मुन्ना  भी रूठा 

मन कानन



कल थे  आगे
पताका उठाये  जो
नारी हक की
लूट रहे अस्मत
कलम की धार से 


नग्नता  कहाँ ?
दुध पिलाती  माता
नग्न  दिखती
नग्नता  कहाँ .... दृष्टी  ...??
या  कुंठित  सोच में  ?


ताजमहल
यादगार प्यार की
कब्र महल 


प्यार में जिसके ज़माने से  रुसवा  हो गए
वो आये और लाश  कह दफना के चले गए 



हुआ  पत्थर
तराशे  बेखबर 

 ताजमहल 

हुआ पत्थर
बना ताजमहल
वो / था बेखबर 


बना पत्थर
तराश रहा  था  जब
ताजमहल 


प्यार  सौगात
मिला  जैसे हो खुदा
करो  बंदगी

नहीं चाहिए
वफ़ा जफा का लेखा
प्रेम  अमर ।

बुझे  न  कोई
प्रेम  रसीला  काव्य
नही गणित / सीधा गणित 



दर्दे दिल है
 यूँही  बयाँ  न  कर 

शब्द चितेरे
लिख  देंगे ग़ज़ल
चुरा आंसु  ये  तेरे

रहम नही
है इश्क   इबादत
बसते  खुदा


गुनगुनाती
दे गयी  पाती  हवा
मेरे पिया की

सजनी भोली
पिया  परदेशिया
राह  तकती


पुकारती है
स्वतंत्रता रक्षार्थ
भारतमाता

खोजती माता
 बेशकीमती  रत्न
गड़े थे धरा

सुना है मैंने
इश्क इबादत है
दिलो को जोड़े

 अश्रु वो तेरे
पलकों पर मेरे
मोती से सजे


सुहानी यादें
बसी खुशबू जैसी
मन में मेरे

ज़माने का क्या
सेंकता हाथ वह
इश्क चिता पे

 फूल थे रोपे
बंजर दिल तेरा
कैक्टस उगे

Friday, February 22, 2013

ये मजबूरी



है कैसी ये मजबूरी
तुम दिन को अगर रात कहो
रात कहते हम भी
गर दिन को  मैं कहु दिन
तुम नाराज हो जाते हो
दिखने लगते हो दुनिया के नक़्शे में
हर वो जगह जहाँ अभी रात है
और मान लेती हु मैं तुम्हारी बात
तुम्हारी खुशियों की खातिर
दिन को रात समझ खो जाती हु
खयालो में ,.. सजाने लगती हु सपने
पलकें बंद कर लेती हूँ
उस रात की अनुभूती  में

और तभी तुम चुटकी बजा देते हो
कहते हो "..पगली ..कहाँ खो गयी ..??
देखो कितना दिन निकल आया ..
और तुम अभी तक सो रहे हो ..!!!???

डाल  देते हो असमंजस में मुझे
क्या कहूँ अब ..दिन या रात ..???

पता है मुझे - तुम कभी सहमत न होगे मुझसे
मुझे ही हर बार झुकना है
इसी तरह .. आ  जायेगी साँझ
तब भी  ...दोनों होंगे सही
दोनों गलत ,,सहमत ,,असहमत
इसी तरह उलझे हुए ...

तुम रात को देखते .... और मैं ..??!!
तुम्हारी रातों को देखते हुए
दिन के इन्तजार  में .......


Sunday, February 17, 2013

कैनवास



जादुई तुली
भरने लगी रंग
सूने  कैनवास पर 

विविध न्यारे प्यारे
जीवन भरे
कभी फूलों से चुरा
कभी मौसम से ले  उधार
उभरने लगी तस्वीर मनचाही
निखरने लगा कैनवास
खेलता रहा रंगों से मनमाना\
खिलखिलाता रहा कैनवास
जैसे मासूम बच्चा
पहन नव परिधान
इतराता रहा जैसे
कोई नवोढ़ा कर सिंगार
लाल हरे नील पीले
रंगों की यारी
नित नए रूप में छाने लगी
खेल खेल में
जादू जो छाया श्वेत रंग का
हुआ दीवाना
इजहारे इश्क  में परवाने ने
डुबो कर खुद को श्वेत रंग में
जीवन भरे कैनवास को
प्रीत के रंग में रंग डाला



Thursday, February 14, 2013

saraswati vandana




बुद्धिदयिनी
श्वेत्वस्त्रावृता शारदे
हंसावाहिनी
कर दो उज्जवल
मेरा अंतर्मन भी

************
 आम्र मंजरी
दूँ पुष्पांजलि माते
भर अंजुरी

************
वीणावादिनी
छेड़ तू सरगम
ज्ञानदायिनी
***********

Wednesday, February 13, 2013

haiku gulshan




जारी है जंग
मेघो की भानु संग
नभ प्रांगन


सर्द हवाएं
करती उपहास
क्षुब्ध  किरणे 


मुस्कान  तेरी
डस गयी बैरन
ये महंगाई 


प्रिये ...स्वागत
नवयुग तुम्हारा
कहे  युगांत

Saturday, February 9, 2013

गुमशुम नजर



जुबां  खामोश.... नजरें भी गुमशुम
पूछ रहे हो हाले -दिल
पढ़ लो तुम .. नैनो में अपनी
 छुपी है जिनमे दस्ताने दिल

हम भी वही ..तुम भी वही
चलो आज ये वादा  करले
चलेंगे यूँही  साथ  साथ हम
एक राह के हम अजनबी

फ़र्जे  मोहब्बत यूँ अदा करले लें
उम्र तमाम यूं गुजर कर लें
बेवफाई का दीपक जला के सनम
वफाओ के रिश्तों को रोशन  करें

ढालना न मुझको गीतों और नगमो में
ऐ  सनम प्यार का नजराना चाहू यही
सुना कर किस्से  मेरी बेवफाई का
प्रेम की  लौ\ यूँही दिल में जलाये रखना 


Wednesday, January 23, 2013

HAIGA 2





जीवन नैया
अब तेरे हवाले
पार लगा दे

 साँसे गिनती
बिना हरियाली के
धरा हमारी

जीवनदात्री
हरीतिमा की प्यासी
चली ढूंढने

धरती उड़ी
उड़नखटोला पे
पिया मिलन

क्षितिज सम
तेरा मेरा मिलन
नभ प्रांगन

अम्बर हठी
मेघ बनाये बंदी
धरती प्यासी

Saturday, January 19, 2013

सुन री पवन




सुन री पवन 
यार है रूठा 
ले जा संदेशा  
मेरे प्यार का 
सहलाके उसकी 
घुंघराली  लटो  को 
चुपके से कानो में कहना 
विरहाग्नि इधर भी लगी है 

प्यार का तुम अहसास  यूँ भरना 
छूके उसकी कोमल अधरों को 

यूँ न रहो गुमशुम कहना 
चूम के अलकें 


खोलो तुम पलकें 
देखो सजन आया कहना 
          
                @}- नेह  -{@


Friday, January 18, 2013

संवेदनाये



मुख दर्पण
देख न पाये सखी
प्रेमांध नैन 


बैठ मुंडेर

काँव -काँव करे है

श्वेत  कपोत


मृत जो हुयी

संवेदनाये  मेरी
मैं जीती गयी

सहला गयी
घुंघराली  लटों  को
बेशर्म  हवा




करूँ  अर्पण

कब्र  पर अपनी
अश्क  सुमन v

शाश्वत प्रेम


                                                 
                                                  

बांसुरी बनूँ
तेरे होठो पे सजू
गीतों में ढलूँ

नैन हमारे
बसे ख्वाब तुम्हारे
है मनमानी /अतिक्रमण


कोमल साँसे
बांधे नाजुक रिश्ते
फिर से जी ले

नैना बाबले
शरमो हया भरे
झुके रहते

मन के घाव
बन गए नासूर
रिसते रहे

झूमे मनवा
सुन री ओ पुरवा
संग है पिया

मनमोहन
बड़ा है चित्तचोर
भोली ग्वालन

चालाक बड़ी
करे है पक्षपात
बांसुरी तेरी

कूकी  कोयल
अमवा की डारी पे
छाया वसंत

शाश्वत प्रेम
राधामोहन युग्म
जग क्या जाने



कौन किसमे ??





तन शव  है
जीवात्मा  है  मदारी
नचाता खूब 



 तन के कर्म
भोगती  रहे रूह
प्रत्येक  जन्म 



तन नश्वर
मानसिक मिलन 

शाश्वत  प्रेम 



कौन किसमे ??
एक दूजे के बिन
दोनों अधूरे 



तम को मिटा

जलाएं प्रेम दीप
रोशन जहाँ

एक दीपक
जलाना  अंतर्मन
 प्रेम ,  दया  का


फोड़ो भी अब

नफरत को मिटा
प्यार के बम

Tuesday, January 15, 2013

दर्पण बोला




सोने की थाल 
धुंध  संग संघर्ष

निखरी आभा 




भ्रम  जो टुटा

बिखरे  ख्वाब  सभी
शीशे  के बने




दर्पण बोला

"मै "  ही सबसे बुरा
ढूंढता  कहाँ ??



प्रतिबिंबित

अंतर्मन मैं तेरा
नजर  मिला 




नम  थी  धरा

पत्ते पत्ते पसीजे
नभ जो रोया



जलती रही 
संस्कारो  की चिताएं

देश में मेरे 




नभ के आँसू

सज गए धरा पे
बनके मोती


जीवन गीत









जीवन गीत
मिलन विरह का
सुर सजाऊं 



जीवन रेल
सुख दुःख पटरी
ठेलमठेल 





बनाते रहे


फलसफे जीने के
जिन्दगी भर 




यादों  के साये
अमराई घनेरी
पीड़  मुस्काए 

रेशमी धुंध


रेशमी  धुंध
लिपटी  कली  कली
पुष्प वल्लरी 

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ओस  की माला
पहन  इतराई
गुलाब  कली 



Friday, January 4, 2013

ऐ चाँद





ऐ  चाँद
 यूँ ना शर्मा खोल दे लब
सुना  जा दिलबर  का हाल
वो अब तक है तेरी  ओर
टकटकी  लगाये हुए

           * * नेह  * *

Wednesday, January 2, 2013

HAIGA ...1














haiku









निहारे सूर्य
कोहरे की चादर
हुआ मायूस 

सूरज सोया
ओढ़ मोती रजाई
खवाबों में खोया

झीनी चादर
देती  गरमाहट
आकाश तले

एक कैंडल
न्याय ..सद्भाव हेतु
जलाना तुम 


गुजरे लम्हे
बिखेरते मुस्कान
लबों पे मेरे 



गुजरे लम्हे
बने हमकदम 
 तन्हा सफ़र 

गुजरे लम्हे
बनते हमराज़
तन्हा रातो में 




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