.

.
** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Friday, April 26, 2013

दर्पण



पूछने लगा है अब
दर्पण यूँ  मुझसे
खोजते हो किसे अब
तुम यूँ मुझमे
कैसे  दिखाऊ अब
अक्स मैं तेरा
मासूम खून के धब्बे
उभरे इस कदर
लगता है हर चेहरा अब
मुझे दागदार सा
कोमल नाखुनो ने उकेरी
दरार अनगिनत
सुन्दर जिस्म तेरा अब
दिखे विछिन्न सा
खो गयी चमक अब
बेनूर मैं हुआ
देखना हो मुख जब
मन में झांकना
पा जाओ गर खुद को
इतनी दया करना
आइना ये सच का तब
जग को भी दिखा देना









Thursday, April 25, 2013

दुर्लभ काया




 काया दुल्हन
चढ़ पालकी चली
पिया मिलन

तन पिंजरा
उड़ जाएगा पंछी
अनंत यात्रा

दुर्लभ काया
देवगण तरसे
 वृथा  गंवाया

रूह मदारी
तन कठपुतली
कहे नाचो री

देह नश्वर
कहते ज्ञानी जन
आत्मा अमर

Wednesday, April 24, 2013

जाने कयूँ करता आज मन मेरा




जाने कयूँ करता

आज मन मेरा
एक कश लगा लूँ
उड़ते देखूँ फिक्र को
बनके धुआँ
थोड़ा सा हँस लूँ

जाने कयूँ करता
आज मन मेरा
एक पैग चढ़ा लूँ
पी जाऊँ हर गम 
डाल के बर्फ
थोड़ा सा झूम लूँ

जाने कयूँ करता
आज मन मेरा

सिसकी हवा

उठ रे इंसा
बुझा कैंडल जला
हैवानियत

उगा सूरज
बुझा कैंडल जगा
संवेदनाये/ मन मनुज

इंसानियत
हुयी फैशनेबुल
हो गयी गर्त


 
कृष्ण प्रभात

गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्धो की महफिल
सिसकियो की तान

देश महान
गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्ध करे नर्तन
गौरेया ताने आह

सौम्य भारत 

कलुषित हृदय
जन मानष 

फैलती रही 

सिसकियाँ मासूम
लुटती रही

सिसकी हवा

कलियो का क्रंदन 
उसने सुना

वहशीपन
विज्ञान की ये देन
प्रगतिपर

Saturday, April 20, 2013

जय माँ अम्बे



मोक्षदायिनी
साधना भक्ति तप
दुर्गम पथ

जीवन पथ
करे मार्ग प्रशस्त
कर्म साधना

चाहूँ न कुछ
भक्ति वर देना माँ
प्रत्येक जन्म

चंचल चित्त
साधू जितना इसे
बहके नित

सौम्य सरल
दमके मुख मैया
मैं बलिहारी

जग जननी
हरो तम जग का
तू है कल्याणी

लाल चुनर
गले मुंडमाल है
माँ का शृंगार

सौम्य भारत
कलुषित ह्रदय
जनमानस

ये बर्बरता
बना भाग्य हमारा
क्यूँ पूजे माता ??!!

साध्य साधता
साधक तन मेरा
मन बाधक

Wednesday, April 3, 2013

चाँद मचला



चाँद मचला
छूने चला सरिता
चांदनी संग

भर आगोश
सरिता निहारती
प्रिय का रूप


भीगी हवाएं

ख़त लायी पिया का
क्षत विक्षत 



 बैठी सुस्ताने


ढलती हुयी साँझ

बबूल छांव




सत्य है टंगा
साक्ष्य की शूली पर
तडपे नंगा 



प्रेम दीपक

जले मन मंदिर
नेह की बाती 

नीड़ के पाखी


नव्या में कुछ दिन पूर्व प्रकाशित मेरी रचना "नीड़  के पाखी "  सभी dosto के सम्मुख अवलोकनार्थ .. :) और इस रचना के प्रकाशन का सारा श्रेय मेरे परम मित्र को जाता है जिसने मुझे जरुरी मार्गदर्सन दिया और प्रेरित किया नव्या में प्रकाशन हेतु भेजन के लिए ... नव्या की संपादिका आदरणीया जी की भी तहेदिल से आभारी हु जिन्होंने इस रचना को प्रकाशित कर मुझे अनुगृहित किया :) अब आप सभी की निःसंकोच राय का तहेदिल से स्वागत है :)

नीड़ के पाखी 

चल उड़ रे पाखी ,नीलगगन

उड़ चल तू  पर्वत से ऊँचे बादल के पार

मंजिल तेरी अनंत आकाश

अंजाना सफ़र,चलना है अविरल

जाने कितने सखा सहोदर
देवदार बट पीपल उपवन
छांव घनेरी तुझको  लुभाए
ख्वाबों संग तेरे दौड़ लगाये
थकने लगे जब व्याकुल पंख
लौट चले तेरे सखा सहोदर
रुक ..जरा पीछे मुड़ देखना
खड़ा हुआ हूँ बाहें फैलाये
उसी धरा पर पैर जमाये
आ बैठना गोद में मेरी
सुस्ता लेना पल दो पल
नयी उर्जा नयी आशा भर कर
नयी किरणों के रथ चढ़ कर
आसमान के राही  तुम
चल देना फिर नयी डगर पर

                ** नेह **


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...