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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, March 30, 2016

दिलो की आग न छेड़ो ये दरिया तूफानी है ,



नदी की राह न रोको ये सिंधु की दीवानी है ,
             दिलो  की आग न छेड़ो ये दरिया तूफानी है ,
                           कभी खुद की कभी जग हस्ती ये मिटा डाले
                                              पाकीजा इश्क की जग में ये अंतिम निशानी है । 

Thursday, March 10, 2016

नज्म


 शाम का धुंधलका
प्रार्थना ,अजान के स्वर
घर लौटते पंछियो के कलरव
मृदु हवाओ के संगीत की धुन पर
कहीं सज जाती है महफ़िल
मदमस्त कातिल शोखियां
दिलकश अदाओं के  मुखौटे के पीछे
टूटन ,वेदना ,चीत्कार
मजबूरियां,प्रताड़नाएं
बन जाती है नज्म
गुनगुनाती नज्म
सूखे अश्रुकण
बन जाते है थिरकन
मदहोश थिरकन
दूर  कहीं
बुझते दिए के साथ
खुशबु लुटाते
झरने लगते है
हरश्रृंगार ।


Tuesday, March 8, 2016

फल्गु



फल्गु
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हाँ
जाने क्यों
हटाने लगा था रेत
और एक दिन
फूट ही पड़ी
वो रूखी  खडूस औरत
बहने लगी फिर से
फल्गु नदी
जिन्दा हो कर । 
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